दाढ़ी- महिमा

‘काका’ दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी मुख सून
ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून

व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा
दाढ़ी से ही प्रगति कर गए संत बिनोवा

मुनि वसिष्ठ यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखाते
तो भगवान राम के क्या वे गुरू बन जाते

शेक्सपियर, बर्नार्ड शॉ, टाल्सटॉय, टैगोर
लेनिन, लिंकन बन गए जनता के सिरमौर

जनता के सिरमौर, यही निष्कर्ष निकाला
दाढ़ी थी, इसलिए महाकवि हुए ‘निराला’

कहं ‘काका’, नारी सुंदर लगती साड़ी से
उसी भांति नर की शोभा होती दाढ़ी से।

मंत्री-पुत्र

रसगुल्ले सब खा लिए और मिठाई छोड़,
मम्मी से कहने लगा मुन्ना नाक सिकोड़।

मुन्ना नाक सिकोड़, सख्त हैं लड्डू ऐसे,
तुम्हीं बताओ, मम्मी इनको तोडूं कैसे?

‘तोड़ लिए तेरे पापा ने चार विधायक,
तुझसे लड्डू नहीं टूटता है नालायक?’

वकील

वकील करते प्रार्थना, कलम चले सरपट्ट,
भाई-भाई में चलें, चाकू-गोली-लट्ठ।

चाकू-गोली-लट्ठ, मवक्किल भागे आएँ,
उनकी पाकिट मेरी पाकिट में आ जाएँ।

केस लड़े वर्षों तक, कोई टरे नटारे,
हारे सो मर जाय, और जीते सो हारे।

चाय-चक्रम

एकहि साधे सब सधे, सब साधे सब जाय
दूध-दही-फल अन्न-जल, छोड़ पीजिए चाय

छोड़ पीजिए चाय, अमृत बीसवीं सदी का
जग-प्रसिद्ध जैसे गंगाजल गंग नदी का

कहं ‘काका’, इन उपदेशों का अर्थ जानिए
बिना चाय के मानव-जीवन व्यर्थ मानिए।

डाक पर डाका

बजट घोषणा ने किया, पाकिट पर बंबार्ड
सत्तर का है लिफाफा, लिख सकते हो कार्ड

लिख सकते हो कार्ड, बंद हो चिट्ठी कैसे
अंतर्देशी पत्र, दीजिए पचास पैसे

धन्य-धन्य सरकार, डाक पर डाला डाका
काकी को कैसे भेजें लवलैटर काका।

गणपति बप्पा मोरिया...

प्रजातंत्र-प्रांगण में भगवन् अजब तमाशा होरिया
गणपति बप्पा मोरिया!

गांधीजी का चित्र लगाकर, जनगण धन पर डालें डाका,
जाने कब कुरसी छिन जाए, फिर कैसे जीएंगे काका
खोलेंगे अगले चुनाव में, भर लें आज तिजोरियां,
गणपति बप्पा मोरिया!

गालों पर छाईं है लाली,चेहरा दमक रहा ज्यों दर्पण,
ये सफेद डाकू हैं, हरगिरज नहीं करेंगे आत्मसमर्पण।
जितने पहरेदार बढ़ रहे, उतनी होती चोरियां
गणपति बप्पा मोरिया!

सच्चे स्वतंत्रता सेनानी, ताम्रपत्र को चाट रहे हैं,
जाली सर्टिफिकेट बनाकर, चमचे चांदी काट रहे हैं।
कूटनीति की पिचकारी से, खेल रहे हैं होरियां।
गणपति बप्पा मोरिया!

फर्स्ट क्लास ‘एम.ए’ रिजेक्टर, ले लें थर्ड क्लास बी.ए.को,
साहब नहीं छुएंगे पैसा, दो हजार दे दो पी.ए. को।
जनसेवा का लगा मुखौटा, दाग दनादन गोलियां
गणपति बप्पा मोरिया!

मार्केटिंग को जायं ‘हजूरिन’ सजकर सरकारी कारों में,
उनके दर्शन को हो जाती, भीड़ इकट्ठी बाज़ारों में,
फिल्मी हीरोइन-सी लगतीं, ये राष्ट्रीय चकोरियां
गणपति बप्पा मोरिया!

लड़के लम्बे बाल बढ़ाएं, केस कटाती हैं कन्याएं,
बेटे ब्लाउज़ पहिन रहे हैं, बिटिया जी लुंगी लटकाएं।
धोखे में पड़ जाते ‘काका’, को छोरा को छोरियां,
गणपति बप्पा मोरिया!

ईमानी अफसर को नीचेवाले बेईमान बना दें,
लालच का पेट्रोल छिड़कर कर, नैतिकता में आग लगा दें।
तू भी खा और हमें खिला, या बांध बिस्तरा-बोरियां,
गणपति बप्पा मोरिया!

रिश्वत की रानी

रिश्वत की रानी! धन्य तू, तेरे अगणित नाम,
हक-पानी, उपहार औ, बख्शिश, घूस, इनाम।

बख्शिश, घूस, इनाम, भेंट, नजराना, पगड़ी
तेरे कारण खाऊमल की इनकम तगड़ी।
कहं काका कविराय, दौर-दौरा दिन-दूना,
जहां नहीं तू देवि, महकमा है वह सूना।

जिनको नहीं नसीब थी टूटी-फूटी छान,
आज वहां मना रही कोठी आलीशान।
कोठी आलीशान, भिनकती मुंह पर मक्खी,
उनके घर में घूम रही चांदी की चक्की।

कहं काका कवि, जो रिश्वत का हलवा खाते,
सूखे-पिचके, गाल कचौड़ी-से हो जाते।

हिन्दी बनाम अंग्रेजी

हिन्दी माता को करें, काका कवि डंडौत,
बूढ़ी दादी संस्कृत, भाषाओं का स्त्रोत।
भाषाओं का स्त्रोत कि ‘बारह बहुएँ’ जिसकी
आंख मिला पाए उससे, हिम्मत है किसी?

ईष्या करके ब्रिटेन ने इक दासी भेजी,
सब बहुओं के सिर पर चढ़ बैठी अंगरेजी।
गोरे-चिट्टे-चुलबुले, अंग-प्रत्यंग प्रत्येक,
मालिक लट्टू हो गया, नाक-नक्श को देख।

नाक-नक्श को देख, डिग गई नीयत उसकी,
स्वामी को समझाए, भला हिम्मत है किसकी?
अंगरेजी पटरानी बनकर थिरक रही है,
संस्कृत-हिन्दी, दासी बनकर सिसक रही हैं।

परिचित हैं इस तथ्य से, सभी वर्ग-अपवर्ग,
सास-बहू में मेल हो, घर बन जाए स्वर्ग।
घर बन जाए स्वर्ग, सास की करें हिमायत,
प्रगति करे अवरुद्ध, भला किसकी है ताकत?

किन्तु फिदा दासी पर है, ‘गृहस्वामी’ जब तक,
इस घर से वह नहीं निकल सकती तब तक।