एकहि साधे सब सधे, सब साधे सब जाय
दूध-दही-फल अन्न-जल, छोड़ पीजिए चाय
छोड़ पीजिए चाय, अमृत बीसवीं सदी का
जग-प्रसिद्ध जैसे गंगाजल गंग नदी का
कहं ‘काका’, इन उपदेशों का अर्थ जानिए
बिना चाय के मानव-जीवन व्यर्थ मानिए।
पोपुलर मेरठी, सागर खय्यामी, रहत इन्दोरी, काका हाथरसी, हुल्लड़ मुरादाबादी, शैल चतुर्वेदी, ॐ प्रकाश आदित्य, सुरेन्द्र शर्मा , अशोक चक्रधर, प्रदीप चौबे की हास्य व्यंग रचनाए और कविताए|
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