एक रोज़ हम से कहने लगी एक गुलबदन
ऐनक से बाँध रखी है क्यों आप ने रसन
मिलता है क्या इसी से ये अंदाज़-ऐ-फ़िक्र-ओ-फन
हम ने कहा की ऐसा नहीं है जनाब-ऐ-मन
बैठे जहाँ हसीं हों एक बज्म-ऐ-आम में
रखते हैं हम निगाह को अपनी लगाम में
1 comments:
saagar sahab ka anddaj-e-bayan hi nirala tha. jab wo bolte the to sunne walon ko maza aa jata tha
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