एक  दिन  की  बात  है
गर्मी  थी
बिजली  नही  थी
मै  अपनों  गंजी  उतार  कर
उससेही   पंखा  कर  रह्यो  थे
किचन  में  मेरी  घरादी
मछली  पका  रह्यो  थी
की  वो  बोली
ऐ  जी
सुनते  हो ?
ये  समंदर  क्या  होवे  है ?
तो  मै  बोल्यों
की  ऐ  री
समंदर  वो  होवे  है
जहाँ  बड़ी  बड़ी  मछलियाँ
पानी  के  अन्दर  तैरें  हैं
फिर  भी  न  दिक्खें  हैं
वहीँ  किनारे  जनानियां
बे-पर्दा घूमें  हैं
तो इस  पर  कढाई  में
मछलियों  को  जरा  हिलाकर
वो  बोली
ऐ  जी
तुम  भी  तो  घर  मा
वैसे  ही  घूम्ये  हो
तो  क्या  समझूं ?
के  जैसे  घर  मर्दों
की  होवे  है
जनानियों  की  समंदर  होवे  है ?
 
 
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1 comments:
सुरेन्द्र सहब तो बिना हँसे ही सबको हँसा देते हैं!
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