उम्मीदवार मई भी हु - 2


नवाजो सिर्फ़ मुजे मेहरबानी फरमाकर |


और वादा करता हु एक एक से कसम खाकर |

के पाँच साल से पहले यहाँ कभी आकर |


बनूँगा बाही जे जहमत न मै किसी के लिए |

उम्मीदवार मई भी हु


मै बेकरार हु मुद्दत से मेम्बरी के लिए


टिकेट मूज़े भी दिला दो अस्सेंब्ली के लिए



टिकेट के बात से गैरत भी बेच सकता हु |


मै खानदान की इज्ज़त भी बेच सकता हु |


बीके तो अपनी शराफत भी बेच सकता हु |


मुजे सुकून है डरकर जिंदगी के लिए |

पॉपुलर मेरठी - 5


एक कणकटे का आज ये एलन ऐ आम है


नेता है हम हमारा तो कुर्बानी काम है


नेता का दावा सुनके मई ये सोचने लगा


कुर्बानी कणकटे की तो हराम है

दाढ़ी- महिमा

‘काका’ दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी मुख सून
ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून

व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा
दाढ़ी से ही प्रगति कर गए संत बिनोवा

मुनि वसिष्ठ यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखाते
तो भगवान राम के क्या वे गुरू बन जाते

शेक्सपियर, बर्नार्ड शॉ, टाल्सटॉय, टैगोर
लेनिन, लिंकन बन गए जनता के सिरमौर

जनता के सिरमौर, यही निष्कर्ष निकाला
दाढ़ी थी, इसलिए महाकवि हुए ‘निराला’

कहं ‘काका’, नारी सुंदर लगती साड़ी से
उसी भांति नर की शोभा होती दाढ़ी से।

मंत्री-पुत्र

रसगुल्ले सब खा लिए और मिठाई छोड़,
मम्मी से कहने लगा मुन्ना नाक सिकोड़।

मुन्ना नाक सिकोड़, सख्त हैं लड्डू ऐसे,
तुम्हीं बताओ, मम्मी इनको तोडूं कैसे?

‘तोड़ लिए तेरे पापा ने चार विधायक,
तुझसे लड्डू नहीं टूटता है नालायक?’

वकील

वकील करते प्रार्थना, कलम चले सरपट्ट,
भाई-भाई में चलें, चाकू-गोली-लट्ठ।

चाकू-गोली-लट्ठ, मवक्किल भागे आएँ,
उनकी पाकिट मेरी पाकिट में आ जाएँ।

केस लड़े वर्षों तक, कोई टरे नटारे,
हारे सो मर जाय, और जीते सो हारे।

चाय-चक्रम

एकहि साधे सब सधे, सब साधे सब जाय
दूध-दही-फल अन्न-जल, छोड़ पीजिए चाय

छोड़ पीजिए चाय, अमृत बीसवीं सदी का
जग-प्रसिद्ध जैसे गंगाजल गंग नदी का

कहं ‘काका’, इन उपदेशों का अर्थ जानिए
बिना चाय के मानव-जीवन व्यर्थ मानिए।

डाक पर डाका

बजट घोषणा ने किया, पाकिट पर बंबार्ड
सत्तर का है लिफाफा, लिख सकते हो कार्ड

लिख सकते हो कार्ड, बंद हो चिट्ठी कैसे
अंतर्देशी पत्र, दीजिए पचास पैसे

धन्य-धन्य सरकार, डाक पर डाला डाका
काकी को कैसे भेजें लवलैटर काका।

गणपति बप्पा मोरिया...

प्रजातंत्र-प्रांगण में भगवन् अजब तमाशा होरिया
गणपति बप्पा मोरिया!

गांधीजी का चित्र लगाकर, जनगण धन पर डालें डाका,
जाने कब कुरसी छिन जाए, फिर कैसे जीएंगे काका
खोलेंगे अगले चुनाव में, भर लें आज तिजोरियां,
गणपति बप्पा मोरिया!

गालों पर छाईं है लाली,चेहरा दमक रहा ज्यों दर्पण,
ये सफेद डाकू हैं, हरगिरज नहीं करेंगे आत्मसमर्पण।
जितने पहरेदार बढ़ रहे, उतनी होती चोरियां
गणपति बप्पा मोरिया!

सच्चे स्वतंत्रता सेनानी, ताम्रपत्र को चाट रहे हैं,
जाली सर्टिफिकेट बनाकर, चमचे चांदी काट रहे हैं।
कूटनीति की पिचकारी से, खेल रहे हैं होरियां।
गणपति बप्पा मोरिया!

फर्स्ट क्लास ‘एम.ए’ रिजेक्टर, ले लें थर्ड क्लास बी.ए.को,
साहब नहीं छुएंगे पैसा, दो हजार दे दो पी.ए. को।
जनसेवा का लगा मुखौटा, दाग दनादन गोलियां
गणपति बप्पा मोरिया!

मार्केटिंग को जायं ‘हजूरिन’ सजकर सरकारी कारों में,
उनके दर्शन को हो जाती, भीड़ इकट्ठी बाज़ारों में,
फिल्मी हीरोइन-सी लगतीं, ये राष्ट्रीय चकोरियां
गणपति बप्पा मोरिया!

लड़के लम्बे बाल बढ़ाएं, केस कटाती हैं कन्याएं,
बेटे ब्लाउज़ पहिन रहे हैं, बिटिया जी लुंगी लटकाएं।
धोखे में पड़ जाते ‘काका’, को छोरा को छोरियां,
गणपति बप्पा मोरिया!

ईमानी अफसर को नीचेवाले बेईमान बना दें,
लालच का पेट्रोल छिड़कर कर, नैतिकता में आग लगा दें।
तू भी खा और हमें खिला, या बांध बिस्तरा-बोरियां,
गणपति बप्पा मोरिया!

रिश्वत की रानी

रिश्वत की रानी! धन्य तू, तेरे अगणित नाम,
हक-पानी, उपहार औ, बख्शिश, घूस, इनाम।

बख्शिश, घूस, इनाम, भेंट, नजराना, पगड़ी
तेरे कारण खाऊमल की इनकम तगड़ी।
कहं काका कविराय, दौर-दौरा दिन-दूना,
जहां नहीं तू देवि, महकमा है वह सूना।

जिनको नहीं नसीब थी टूटी-फूटी छान,
आज वहां मना रही कोठी आलीशान।
कोठी आलीशान, भिनकती मुंह पर मक्खी,
उनके घर में घूम रही चांदी की चक्की।

कहं काका कवि, जो रिश्वत का हलवा खाते,
सूखे-पिचके, गाल कचौड़ी-से हो जाते।

हिन्दी बनाम अंग्रेजी

हिन्दी माता को करें, काका कवि डंडौत,
बूढ़ी दादी संस्कृत, भाषाओं का स्त्रोत।
भाषाओं का स्त्रोत कि ‘बारह बहुएँ’ जिसकी
आंख मिला पाए उससे, हिम्मत है किसी?

ईष्या करके ब्रिटेन ने इक दासी भेजी,
सब बहुओं के सिर पर चढ़ बैठी अंगरेजी।
गोरे-चिट्टे-चुलबुले, अंग-प्रत्यंग प्रत्येक,
मालिक लट्टू हो गया, नाक-नक्श को देख।

नाक-नक्श को देख, डिग गई नीयत उसकी,
स्वामी को समझाए, भला हिम्मत है किसकी?
अंगरेजी पटरानी बनकर थिरक रही है,
संस्कृत-हिन्दी, दासी बनकर सिसक रही हैं।

परिचित हैं इस तथ्य से, सभी वर्ग-अपवर्ग,
सास-बहू में मेल हो, घर बन जाए स्वर्ग।
घर बन जाए स्वर्ग, सास की करें हिमायत,
प्रगति करे अवरुद्ध, भला किसकी है ताकत?

किन्तु फिदा दासी पर है, ‘गृहस्वामी’ जब तक,
इस घर से वह नहीं निकल सकती तब तक।

बहोत गहरे हो

अचानक तुम्हारे पीछे
कोई कुत्ता भौंके , 
तो क्या तुम रह सकते हो, 
बिना चौंके,  

अगर रह सकते हो  
तो या तो तुम बहरे हो, 
या फिर बहोत गहरे हो |

व्यंग्य

बिना टिकिट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर
जहाँ ‘मूड’ आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर
खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू
पकड़ें टी. टी. गार्ड, उन्हें दिखलाते चक्कू
गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार बढ़ा दिन-दूना
प्रजातंत्र की स्वतंत्रता का देख नमूना
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राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर
‘क्यू’ में धक्का मारकर, पहुँच गये बलवीर
पहुँच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला
खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला
कहँ ‘काका' कवि, करके बंद धरम का काँटा
लाला बोले - भागो, खत्म हो गया आटा
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घूस माहात्म्य

कभी घूस खाई नहीं, किया न भ्रष्टाचार
ऐसे भोंदू जीव को बार-बार धिक्कार
बार-बार धिक्कार, व्यर्थ है वह व्यापारी
माल तोलते समय न जिसने डंडी मारी
कहँ 'काका', क्या नाम पायेगा ऐसा बंदा
जिसने किसी संस्था का, न पचाया चंदा

पहलवान का विवाह

एक पहलवान का होने वाला था विवाह ,
उसके दोस्तों ने दी उसे सलाह ...

लड़की से ज़रा कोमल बात करना ,
लड़की से ज़रा कोमल बात करना ,
भाभुकता भरे शब्दों की बरसात करना ..

प्रथम रात्री को पहलवान ने मुगदर घुमाया,
पलंग का बेसवा चक्कर लगाया,
और बहुत सोच समझ कर बोला,

पंजा लड़ाएगी ....!!

चल गई

वैसे तो एक शरीफ इंसान हूँ

आप ही की तरह श्रीमान हूँ

मगर अपना आंख से

बहुत परेशान हूँ

अपने आप चलती है

लोग समझते हैं -- चलाई गई है

जान-बूझ कर मिलाई गई है।


एक बार बचपन में

शायद सन पचपन में

क्लास में

एक लड़की बैठी थी पास में

नाम था सुरेखा

उसने हमें देखा

और बांई चल गई

लड़की हाय-हाय

क्लास छोड़ बाहर निकल गई।


थोड़ी देर बाद

हमें है याद

प्रिसिपल ने बुलाया

लंबा-चौड़ा लेक्चर पिलाया

हमने कहा कि जी भूल हो गई

वो बोल - ऐसा भी होता है भूल में

शर्म नहीं आती

ऐसी गंदी हरकतें करते हो,

स्कूल में?

और इससे पहले कि

हकीकत बयान करते

कि फिर चल गई

प्रिंसिपल को खल गई।

हुआ यह परिणाम

कट गया नाम

बमुश्किल तमाम

मिला एक काम।


इंटरव्यूह में, खड़े थे क्यू में

एक लड़की था सामने अड़ी

अचानक मुड़ी

नजर उसकी हम पर पड़ी

और आंख चल गई

लड़की उछल गई

दूसरे उम्मीदवार चौंके

उस लडकी की साईड लेकर

हम पर भौंके

फिर क्या था

मार-मार जूते-चप्पल

फोड़ दिया बक्कल

सिर पर पांव रखकर भागे

लोगबाग पीछे, हम आगे

घबराहट में घुस गये एक घर में

भयंकर पीड़ा था सिर में

बुरी तरह हांफ रहे थे

मारे डर के कांप रहे थे

तभी पूछा उस गृहणी ने --

कौन ?

हम खड़े रहे मौन

वो बोली

बताते हो या किसी को बुलाऊँ ?

और उससे पहले

कि जबान हिलाऊँ

चल गई

वह मारे गुस्से के

जल गई

साक्षात दुर्गा-सी दीखी

बुरी तरह चीखी

बात की बात में जुड़ गये अड़ोसी-पड़ोसी

मौसा-मौसी

भतीजे-मामा

मच गया हंगामा

चड्डी बना दिया हमारा पजामा

बनियान बन गया कुर्ता

मार-मार बना दिया भुरता

हम चीखते रहे

और पीटने वाले

हमें पीटते रहे

भगवान जाने कब तक

निकालते रहे रोष

और जब हमें आया होश

तो देखा अस्पताल में पड़े थे

डाक्टर और नर्स घेरे खड़े थे

हमने अपनी एक आंख खोली

तो एक नर्स बोली

दर्द कहां है?

हम कहां कहां बताते

और इससे पहले कि कुछ कह पाते

चल गई

नर्स कुछ नहीं बोली

बाइ गॉड ! (चल गई)

मगर डाक्टर को खल गई

बोला --

इतने सीरियस हो

फिर भी ऐसी हरकत कर लेते हो

इस हाल में शर्म नहीं आती

मोहब्बत करते हुए

अस्पताल में?

उन सबके जाते ही आया बार्ड बॉय

देने लगा अपनी राय

भाग जाएं चुपचाप

नहीं जानते आप

बढ़ गई है बात

डाक्टर को गड़ गई है

केस आपका बिगड़वा देगा

न हुआ तो मरा बताकर

जिंदा ही गड़वा देगा।

तब अंधेरे में आंखें मूंदकर

खिड़की के कूदकर भाग आए

जान बची तो लाखों पाये।


एक दिन सकारे

बाप जी हमारे

बोले हमसे --

अब क्या कहें तुमसे ?

कुछ नहीं कर सकते

तो शादी कर लो

लड़की देख लो।

मैंने देख ली है

जरा हैल्थ की कच्ची है

बच्ची है, फिर भी अच्छी है

जैसी भी, आखिर लड़की है

बड़े घर की है, फिर बेटा

यहां भी तो कड़की है।

हमने कहा --

जी अभी क्या जल्दी है?

वे बोले --

गधे हो

ढाई मन के हो गये

मगर बाप के सीने पर लदे हो

वह घर फंस गया तो संभल जाओगे।


तब एक दिन भगवान से मिलके

धड़कता दिल ले

पहुंच गए रुड़की, देखने लड़की

शायद हमारी होने वाली सास

बैठी थी हमारे पास

बोली --

यात्रा में तकलीफ तो नहीं हुई

और आंख मुई चल गई

वे समझी कि मचल गई

बोली --

लड़की तो अंदर है

मैं लड़की की मां हूँ

लड़की को बुलाऊँ

और इससे पहले कि मैं जुबान हिलाऊँ

आंख चल गई दुबारा

उन्होंने किसी का नाम ले पुकारा

झटके से खड़ी हो गईं

हम जैसे गए थे लौट आए

घर पहुंचे मुंह लटकाए

पिता जी बोले --

अब क्या फायदा

मुंह लटकाने से

आग लगे ऐसी जवानी में

डूब मरो चुल्लू भर पानी में

नहीं डूब सकते तो आंखें फोड़ लो

नहीं फोड़ सकते हमसे नाता ही तोड़ लो

जब भी कहीं जाते हो

पिटकर ही आते हो

भगवान जाने कैसे चलाते हो?


अब आप ही बताइये

क्या करूं?

कहां जाऊं?

कहां तक गुन गांऊं अपनी इस आंख के

कमबख्त जूते खिलवाएगी

लाख-दो-लाख के।

अब आप ही संभालिये

मेरा मतलब है कि कोई रास्ता निकालिये

जवान हो या वृद्धा पूरी हो या अद्धा

केवल एक लड़की

जिसकी एक आंख चलती हो

पता लगाइये

और मिल जाये तो

हमारे आदरणीय 'काका' जी को बताइये।

बाप का बीस लाख फूँक कर

लोकल ट्रेन से उतरते ही
हमने सिगरेट जलाने के लिए
एक साहब से माचिस माँगी
तभी किसी भिखारी ने
हमारी तरफ हाथ बढ़ाया
हमने कहा-
"भीख माँगते शर्म नहीं आती?"
वो बोला-
"माचिस माँगते आपको आयी थी क्‍या"
बाबूजी! माँगना देश का करेक्‍टर है
जो जितनी सफाई से माँगे
उतना ही बड़ा एक्‍टर है
ये भिखारियों का देश्‍ा है
लीजिए! भिखारियों की लिस्‍ट पेश है
धंधा माँगने भिखारी
चंदा माँगने वाला
दाद माँगने वाला
औलाद माँगने वाला
दहेज माँगने वाला
नोट माँगने वाला
और तो और
वोट माँगने वाला
हमने काम माँगा
तो लोग कहते हैं चोर है
भीख माँगी तो कहते हैं
कामचोर है
उनमें कुछ नहीं कहते
जो एक वोट के लिए
दर-दर नाक रगड़ते हैं
घिस जाने पर रबर की खरीद लाते हैं
और उपदेशों की पोथियाँ खोलकर
महंत बन जाते हैं।
लोग तो एक बिल्‍ला से परेशान हैं
यहाँ सैकड़ों बिल्‍ले
खरगोश की खाल में देश के हर कोने में विराजमान हैं।
हम भिखारी ही सही
मगर राजनीति समझते हैं
रही अखबार पढ़ने की बात
तो अच्‍छे-अच्‍छे लोग
माँग कर पढ़ते हैं
समाचार तो समाचार
लोग बाग पड़ोसी से
अचार तक माँग लाते हैं
रहा विचार!
तो वह बेचारा
महँगाई के मरघट में
मुद्दे की तरह दफन हो गया है।
समाजवाद का झंडा
हमारे लिए कफन हो गया है
कूड़ा खा रहे हैं और बदबू पी रहे हैं
उनका फोटो खींचकर
फिल्‍म वाले लाखों कमाते हैं
झोपड़ी की बात करते हैं
मगर जुहू में बँगला बनवाते हैं।
हमने कहा "फिल्‍म वालों से
तुम्‍हारा क्‍या झगड़ा है ?"
वो बोला-
"आपके सामने भिखारी नहीं
भूतपूर्व प्रोड्यूसर खड़ा है
बाप का बीस लाख फूँक कर
हाथ में कटोरा पकड़ा!"
हमने पाँच रुपए उसके
हाथ में रखते हुए कहा-
"हम भी फिल्‍मों में ट्राई कर रहे हैं !"
वह बोला, "आपकी रक्षा करें दुर्गा माई
आपके लिए दुआ करूँगा
लग गई तो ठीक
वरना आपके पाँच में अपने पाँच मिला कर
दस आपके हाथ पर धर दूँगा !"

पूंछ और मूंछ

एक के पास मूंछ थी
एक के पास पूंछ थी
मूंछ वाले को कोई
पूछता नही था
पूंछ वाले की पूछ थी |

मुछ वाले के पास
तनी हुई मूंछ का सवाल था
पूंछ वाले के पास
जुकी हुई पूंछ का जवाब था |

पूंछ की दो दिशाए नही होती है
या तो भयभीत होकर दुबकेगी
या मुहब्बत में हिलेगी
मारेगी या मरेगी
पर एक वक्त में
एक ही काम करेगी |
मूंछे क्यो अशक्त है,
क्योंकि दो दिशाओ में
विभक्त है |

एक जुकी मूंछ वाला
जुकी पूंछ वाले से बोला -
यार ,
मई ज़िन्दगी में
उठ नही प् रहा हु|

पूंछ वाला बोला-
बिल्कुल नही उठ पाओगे
कारन एक मिनुत में
समज जाओगे |
बताता हु,
तुम बिना हाथ लगाए
अपनी मूंछ उठाकर दिखाओ
मई अपनी पूंछ उठाकर दिखाता हु |
जो उठा सकता है
वही उठ सकता है,
इसीलिए पूंछ वालों की
सत्ता है |

व्यवस्था

ऐनक - सागर खैय्यामी

एक रोज़ हम से कहने लगी एक गुलबदन
ऐनक से बाँध रखी है क्यों आप ने रसन
मिलता है क्या इसी से ये अंदाज़-ऐ-फ़िक्र-ओ-फन
हम ने कहा की ऐसा नहीं है जनाब-ऐ-मन
बैठे जहाँ हसीं हों एक बज्म-ऐ-आम में
रखते हैं हम निगाह को अपनी लगाम में

रेल का डिब्बा

जहाँ गाये थे खुशियों के तराने
मुक़द्दर देखिये रोये वहीं पर
हुए मस्जिद से गम जूते हमारे
जहाँ से पाये थे, खोये वहीं पर

रेल के डिब्बे में ये किस्सा हुआ
एक बच्चा ज़ोर से रोने लगा
मान ने समझाने की कोशिश की बहोत
उस को बहलाने की कोशिश की बहोत
थक के आख़िर लोरीयाँ गाने लगी
बिजलियाँ कानो पर बरसाने लगी
दस मिनट तक लोरीयाँ जब वो गा चुकी
तिल -मिला कर बोल उठा एक आदमी
"बहनजी , इतना करम अब कीजीये
आप इस बच्चे को रोने दीजीये !"

जिस दिन हुआ पठान के मुर्गे का इंतकाल
दावत की मौलवी की तब आया उसे खाया
मुरदार मुर्ग की हुई मुल्लाह को जब ख़बर
सारा बदन सुलग उठा , गालिब हुआ जलाल
कहने लगे खिलाओगे मम गोश्त ?
तुम को नहीं ज़रा भी शरियत का कुछ ख़याल
मुरदार गोश्त तो शरियत में है हराम
जब तक न जिबाह कीजिए , होता नहीं हलाल
फतवा जब अपना मौलवी साहब सूना चुके
झुंझला के खान ने किया तब उनसे ये सवाल
कैसी है आप की ये शरियत बताईये
बन्दे को कर दिया है खुदा से भी बा -कमाल
अल्लाह जिस को मार दे , हो जाए वो हराम
बन्दे के हाथ जो मरे , हो जाए वो हलाल

पोल-खोलक यंत्र

ठोकर खाकर हमने
जैसे ही यंत्र को उठाया,
मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई
कुछ घरघराया।
झटके से गरदन घुमाई,
पत्नी को देखा
अब यंत्र से
पत्नी की आवाज़ आई-
मैं तो भर पाई!
सड़क पर चलने तक का
तरीक़ा नहीं आता,
कोई भी मैनर
या सली़क़ा नहीं आता।
बीवी साथ है
यह तक भूल जाते हैं,
और भिखमंगे नदीदों की तरह
चीज़ें उठाते हैं।
....इनसे
इनसे तो
वो पूना वाला
इंजीनियर ही ठीक था,
जीप में बिठा के मुझे शॉपिंग कराता
इस तरह राह चलते
ठोकर तो न खाता।
हमने सोचा-
यंत्र ख़तरनाक है!
और ये भी एक इत्तेफ़ाक़ है
कि हमको मिला है,
और मिलते ही
पूना वाला गुल खिला है।

और भी देखते हैं
क्या-क्या गुल खिलते हैं?
अब ज़रा यार-दोस्तों से मिलते हैं।
तो हमने एक दोस्त का
दरवाज़ा खटखटाया
द्वार खोला, निकला, मुस्कुराया,
दिमाग़ में होने लगी आहट
कुछ शूं-शूं
कुछ घरघराहट।
यंत्र से आवाज़ आई-
अकेला ही आया है,
अपनी छप्पनछुरी,
गुलबदन को
नहीं लाया है।
प्रकट में बोला-
ओहो!
कमीज़ तो बड़ी फ़ैन्सी है!
और सब ठीक है?
मतलब, भाभीजी कैसी हैं?
हमने कहा-
भा...भी....जी
या छप्पनछुरी गुलबदन?
वो बोला-
होश की दवा करो श्रीमन्‌
क्या अण्ट-शण्ट बकते हो,
भाभीजी के लिए
कैसे-कैसे शब्दों का
प्रयोग करते हो?
हमने सोचा-
कैसा नट रहा है,
अपनी सोची हुई बातों से ही
हट रहा है।
सो फ़ैसला किया-
अब से बस सुन लिया करेंगे,
कोई भी अच्छी या बुरी
प्रतिक्रिया नहीं करेंगे।

लेकिन अनुभव हुए नए-नए
एक आदर्शवादी दोस्त के घर गए।
स्वयं नहीं निकले
वे आईं,
हाथ जोड़कर मुस्कुराईं-
मस्तक में भयंकर पीड़ा थी
अभी-अभी सोए हैं।
यंत्र ने बताया-
बिल्कुल नहीं सोए हैं
न कहीं पीड़ा हो रही है,
कुछ अनन्य मित्रों के साथ
द्यूत-क्रीड़ा हो रही है।
अगले दिन कॉलिज में
बी०ए० फ़ाइनल की क्लास में
एक लड़की बैठी थी
खिड़की के पास में।
लग रहा था
हमारा लैक्चर नहीं सुन रही है
अपने मन में
कुछ और-ही-और
गुन रही है।
तो यंत्र को ऑन कर
हमने जो देखा,
खिंच गई हृदय पर
हर्ष की रेखा।
यंत्र से आवाज़ आई-
सरजी यों तो बहुत अच्छे हैं,
लंबे और होते तो
कितने स्मार्ट होते!
एक सहपाठी
जो कॉपी पर उसका
चित्र बना रहा था,
मन-ही-मन उसके साथ
पिकनिक मना रहा था।
हमने सोचा-
फ़्रायड ने सारी बातें
ठीक ही कही हैं,
कि इंसान की खोपड़ी में
सैक्स के अलावा कुछ नहीं है।
कुछ बातें तो
इतनी घिनौनी हैं,
जिन्हें बतलाने में
भाषाएं बौनी हैं।

एक बार होटल में
बेयरा पांच रुपये बीस पैसे
वापस लाया
पांच का नोट हमने उठाया,
बीस पैसे टिप में डाले
यंत्र से आवाज़ आई-
चले आते हैं
मनहूस, कंजड़ कहीं के साले,
टिप में पूरे आठ आने भी नहीं डाले।
हमने सोचा- ग़नीमत है
कुछ महाविशेषण और नहीं निकाले।

ख़ैर साहब!
इस यंत्र ने बड़े-बड़े गुल खिलाए हैं
कभी ज़हर तो कभी
अमृत के घूंट पिलाए हैं।
- वह जो लिपस्टिक और पाउडर में
पुती हुई लड़की है
हमें मालूम है
उसके घर में कितनी कड़की है!
- और वह जो पनवाड़ी है
यंत्र ने बता दिया
कि हमारे पान में
उसकी बीवी की झूठी सुपारी है।
एक दिन कविसम्मेलन मंच पर भी
अपना यंत्र लाए थे
हमें सब पता था
कौन-कौन कवि
क्या-क्या करके आए थे।

ऊपर से वाह-वाह
दिल में कराह
अगला हूट हो जाए पूरी चाह।
दिमाग़ों में आलोचनाओं का इज़ाफ़ा था,
कुछ के सिरों में सिर्फ
संयोजक का लिफ़ाफ़ा था।

ख़ैर साहब,
इस यंत्र से हर तरह का भ्रम गया
और मेरे काव्य-पाठ के दौरान
कई कवि मित्र
एक साथ सोच रहे थे-
अरे ये तो जम गया!

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

तुम एम.ए. फ़ास्ट डिवीज़न हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिए,
मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम राबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू साप्रेता हूँ,
तुम एसी घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेता हूँ,
तुम नई मारुति लगती हो, मैं स्कूटर लमरेता हूँ,
इस कदर अगर हम चुप-चुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डॅडी अमरीश पूरी बन जाएँगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो ज़ैल प्रिए,

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिए,
तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखो की हड़ताल प्रिए,
तुम हीरे जड़ी तश्तारी हो, मैं अल्मुनियम का थाल प्रिए,
तुम चिकन-सूप बीरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिए, :hysterical:
तुम हिरण-चाओकाड़ी भारती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिए,
तुम चंदन-वॅन की लकड़ी हो, मैं हूँ बबूल की छाल प्रिए,
मैं पाके आम सा लटका हूँ, मत मारो मुझे गुलेल प्रिए, :hysterical::hysterical:

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

मैं शनि-देव जैसा कुरूप, तुम कोमल काँचन काया हो,
मैं तन-से मन-से कांशी राम, तुम महा चंचला माया हो,
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ,
तुम राज घाट का शांति मार्च, मैं हिंदू-मुस्लिम दंगा हूँ, :hysterical:
तुम हो पूनम का ताजमहल, मैं काली गुफ़ा जनता की,
तुम हो वरदान विधाता का, मैं ग़लती हूँ भगवांता की,
तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की तेलम-तेल प्रिए, :hysterical:

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए

तुम नई विदेशी मिक्सी हो, मैं पत्थर का सिलबत्ता हूँ,
तुम ए.के.-सैंतालीस जैसी, मैं तो इक देसी काटता हूँ,
तुम चतुर राबड़ी देवी सी, मैं भोला-भला लालू हूँ,
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मैं चिड़ियाघर का भालू हूँ,
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वी.पी.सिन्घ सा ख़ाली हूँ, :hysterical::hysterical:
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं पोलीस्मॅन की गाली हूँ,
कल जेल अगर हो जाए तो दिलवा देना तुम बेल प्रिए,

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितारा होटेल हो,
मैं माहुए का देसी ठर्रा, तुम रेड-लेबल की बोटेल हो, :haha:
तुम चित्रा-हार का मधुर गीत, मैं कृषि-दर्शन की झाड़ी हूँ,
तुम विश्वा-सुंदरी सी कमाल, मैं ठेलिय छाप कबाड़ी हूँ,
तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलिफोन वाला चोँगा,
तुम मछली मानसरोवर की, मैं सागर तट का हूँ घॉंघा,
दुस मंज़िल से गिर जाऊगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिए,

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्षा की लाचारी हूँ,
तुम हो ममता-ज़ैललिता सी, मैं क्वारा अटल-बिहारी हूँ,
तुम तेंदुलकर का शतक प्रिए, मैं फॉलो ओं की पारी हूँ,
तुम गेट्ज़, मातिज़, करॉला हो मैं लेयलेंड की लॉरी हूँ, :haha:
मुझको रेफ़री ही रेहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिए,
मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,
मैं सोच रहा की रहे हैं क़ब्से, श्रोता मुझको झेल प्रिए,
मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए.

पुलिस-महिमा



पड़ा - पड़ा क्या कर रहा , रे मूरख नादान

दर्पण रख कर सामने , निज स्वरूप पहचान

निज स्वरूप पह्चान , नुमाइश मेले वाले

झुक - झुक करें सलाम , खोमचे - ठेले वाले

कहँ ‘ काका ' कवि , सब्ज़ी - मेवा और इमरती

चरना चाहे मुफ़्त , पुलिस में हो जा भरती


कोतवाल बन जाये तो , हो जाये कल्यान

मानव की तो क्या चले , डर जाये भगवान

डर जाये भगवान , बनाओ मूँछे ऐसीं

इँठी हुईं , जनरल अयूब रखते हैं जैसीं

कहँ ‘ काका ', जिस समय करोगे धारण वर्दी

ख़ुद आ जाये ऐंठ - अकड़ - सख़्ती - बेदर्दी


शान - मान - व्यक्तित्व का करना चाहो विकास

गाली देने का करो , नित नियमित अभ्यास

नित नियमित अभ्यास , कंठ को कड़क बनाओ

बेगुनाह को चोर , चोर को शाह बताओ

‘ काका ', सीखो रंग - ढंग पीने - खाने के

‘ रिश्वत लेना पाप ' लिखा बाहर थाने के

टेलीफोन

हमारा टेलीफोन है कितना महान
एक नमूना देखिये श्रीमान
हमने लगाया रेलवे inquiry
लग गया कब्रिस्तान

हुआ यूं के हमें कहीं जाना था
सो गाड़ी में आरक्षण करवाना था
सोच के हमने रेलवे का नम्बर लगाया
हमें क्या मालून उधर कब्रिस्तान के बाबु ने उठाया

हमने कहा - एक बर्थ चाहिए, मिल जायेगी?
बैठे ही आपके लिए हैं, हमारी सेवा कब काम आएगी?
हमारा होते बिलकूल न घबराइये
एक क्या दस बर्थ खाली हैं, पूरे खानदान को ले आइये!

भिखारी

जनता क्लास थ्री टायर से
उतर कर हमने
बासी पुडियो का प्यकेट
जैसे ही भिखारी को बढाया
भिखारी हाथ उठा कर बडबडाया
आगे जाओ बाबा
मै फर्स्ट क्लास के यात्रियो का
भिखारी हु |

ये समंदर क्या होवे है ?

एक दिन की बात है
गर्मी थी
बिजली नही थी
मै अपनों गंजी उतार कर
उससेही पंखा कर रह्यो थे
किचन में मेरी घरादी
मछली पका रह्यो थी
की वो बोली
ऐ जी
सुनते हो ?
ये समंदर क्या होवे है ?
तो मै बोल्यों
की ऐ री
समंदर वो होवे है
जहाँ बड़ी बड़ी मछलियाँ
पानी के अन्दर तैरें हैं
फिर भी न दिक्खें हैं
वहीँ किनारे जनानियां
बे-पर्दा घूमें हैं

तो इस पर कढाई में
मछलियों को जरा हिलाकर
वो बोली
ऐ जी
तुम भी तो घर मा
वैसे ही घूम्ये हो
तो क्या समझूं ?
के जैसे घर मर्दों
की होवे है
जनानियों की समंदर होवे है ?

पॉपुलर मेरठी - ४

इस मर्तबा भी आए हैं नम्बर तेरे तो कम
रुसवाइयों का मेरी दफ्तर बनेगा तू
बेटे के सर पे देके चपत बाप ने कहा
फिर फ़ैल हो गया है मिनिस्टर बनेगा तू

किसी जलसे मे इक लीडर ने यह ऐलान फ़रमाया
हमारे मंत्री आने को हैं बेदार हो जाओ
यकायक फ़िल्म का नगमा कहीं से गूँज उठा था
‘वतन की आबरू खतरे मे है होसियार होजा ओ

पुरानी शायरी नये संदर्भ (पैरोडियाँ)

अभी तो मैं जवान हूँ

ज़िन्दगी़ में मिल गया कुरसियों का प्यार है
अब तो पांच साल तक बहार ही बहार है
कब्र में है पांव पर
फिर भी पहलवान हूँ
अभी तो मैं जवान हूँ


मुझसे पहली सी मुहब्बत

सोयी है तक़दीर ही जब पीकर के भांग
मंहगाई की मार से टूट गयी है टांग
तुझे फोन अब नहीं करूंगा
पी सी ओ से हांगकांग
मुझसे पहले सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग


ऐ इश्क मुझे बरबाद न कर

तू पहले ही है पिटा हुआ ऊपर से दिल नाशाद न कर
जो गयी जमानत जाने दे वह जेल के दिन अब याद न कर
तू रात फोन पर डेढ़ बजे विस्की रम की फरियाद न कर
तेरी लुटिया तो डूब चुकी ऐ इश्क मुझे बरबाद न कर


जब लाद चलेगा बंजारा

इक चपरासी को साहब ने कुछ ख़ास तरह से फटकारा
औकात न भूलो तुम अपनी यह कह कर चांटा दे मारा
वह बोला कस्टम वालों की जब रेड पड़ेगी तेरे घर
सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहां
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं

आंसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने कुआ टूटा है पैमाना दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहीं

भारतीय रेल

एक बार हमे करनी पड़ी रेल की यात्रा
देख सवारियों की मात्रा
पसीने लगे छुटने
हम घर की तरफ़ लगे फूटने
इतने में एक कुली आया
ओर हमसे फ़रमाया
साब अन्दर जाना है?
हमने कहा हां भाई जाना है
उसने कहा अन्दर तो पंहुचा दूंगा
पर रुपये पुरे पचास लूँगा
हमने कहा समान नही केवल हम है
तोह उसने कहा क्या आप किसी समान से कम है ?
जैसे तैसे डिब्बे के अन्दर पहुचे
यहाँ का दृश्य तो ओर भी घमासान था
पुरा का पुर डिब्बा अपने आप में एक हिंदुस्तान था
कोई सीट पर बैठा था, कोई खड़ा था
जिसे खड़े होने की भी जगह नह मिली ओह सीट के निचे पड़ा था
इतने में एक बोरा उछालकर आया ओर गंजे के सर से टकराया
गूंजा चिल्लाया यह किसका बोरा है ?
बाजु वाला बोला इसमे तो बारह साल का चोर है
तभी कुछ आवाज़ हुई ओर
इतने मैं एक बोला चली चली
दूसरा बोला या अली …
हमने कहा कहे की अली कहे की बलि
ट्रेन तोह बगल वाली चली ….

शायर

मैं हूँ जिस हाल में ऐ मेरे सनम रहने दे
तेग मत दे मेरे हाथों में कलम रहने दे
मैं तो शायर हूँ मेरा दिल है बहोत ही नाज़ुक
मैं पटाके ही से मर जाऊँगा, बम रहने दे

सागर खैय्यामी

रफ्ता रफ्ता हर पुलिस वाले को शायर कर दिया
महफ़िल-ऐ-शेर-ओ-सुखान में भेज कर सरकार ने
एक कैदी सुबह को फांसी लगा कर मर गया
रात भर गज़ले सुनाई उस को थानेदार ने


एक शाम किसी बज्म में जूते जो खो गए
हम ने कहा बताईये घर कैसे जायेंगे
कहने लगे के शेर सुनाते रहो यूं ही
गिनते नही बनेंगे अभी इतने आएंगे


बोला दूकानदार के क्या चाहिए तुम्हें ?
जो भी कहोगे मेरी दूकान पर वो पाओगे
मैं ने कहा के कुत्ते के खाने का 'cake' है ?
बोला यहीं पे खाओगे यां घर लेके जाओगे ?

पॉपुलर मेरठी - २

अजब नहीं है जो तुक्का भी तीर हो जाए
पते जो दूध तो फिर वोह पनीर हो जाए
मवालियों को न देखा करो हिकारत से
न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए

महबूब

महबूब वादा कर के भी आया ना दोस्तों
क्या क्या किया ना हम ने यहाँ उस के प्यार में
मुर्गे चुरा के लाये थे जो चार
दो आरजू में कट गए, दो इंतज़ार में