रेल का डिब्बा

जहाँ गाये थे खुशियों के तराने
मुक़द्दर देखिये रोये वहीं पर
हुए मस्जिद से गम जूते हमारे
जहाँ से पाये थे, खोये वहीं पर

रेल के डिब्बे में ये किस्सा हुआ
एक बच्चा ज़ोर से रोने लगा
मान ने समझाने की कोशिश की बहोत
उस को बहलाने की कोशिश की बहोत
थक के आख़िर लोरीयाँ गाने लगी
बिजलियाँ कानो पर बरसाने लगी
दस मिनट तक लोरीयाँ जब वो गा चुकी
तिल -मिला कर बोल उठा एक आदमी
"बहनजी , इतना करम अब कीजीये
आप इस बच्चे को रोने दीजीये !"

जिस दिन हुआ पठान के मुर्गे का इंतकाल
दावत की मौलवी की तब आया उसे खाया
मुरदार मुर्ग की हुई मुल्लाह को जब ख़बर
सारा बदन सुलग उठा , गालिब हुआ जलाल
कहने लगे खिलाओगे मम गोश्त ?
तुम को नहीं ज़रा भी शरियत का कुछ ख़याल
मुरदार गोश्त तो शरियत में है हराम
जब तक न जिबाह कीजिए , होता नहीं हलाल
फतवा जब अपना मौलवी साहब सूना चुके
झुंझला के खान ने किया तब उनसे ये सवाल
कैसी है आप की ये शरियत बताईये
बन्दे को कर दिया है खुदा से भी बा -कमाल
अल्लाह जिस को मार दे , हो जाए वो हराम
बन्दे के हाथ जो मरे , हो जाए वो हलाल

पोल-खोलक यंत्र

ठोकर खाकर हमने
जैसे ही यंत्र को उठाया,
मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई
कुछ घरघराया।
झटके से गरदन घुमाई,
पत्नी को देखा
अब यंत्र से
पत्नी की आवाज़ आई-
मैं तो भर पाई!
सड़क पर चलने तक का
तरीक़ा नहीं आता,
कोई भी मैनर
या सली़क़ा नहीं आता।
बीवी साथ है
यह तक भूल जाते हैं,
और भिखमंगे नदीदों की तरह
चीज़ें उठाते हैं।
....इनसे
इनसे तो
वो पूना वाला
इंजीनियर ही ठीक था,
जीप में बिठा के मुझे शॉपिंग कराता
इस तरह राह चलते
ठोकर तो न खाता।
हमने सोचा-
यंत्र ख़तरनाक है!
और ये भी एक इत्तेफ़ाक़ है
कि हमको मिला है,
और मिलते ही
पूना वाला गुल खिला है।

और भी देखते हैं
क्या-क्या गुल खिलते हैं?
अब ज़रा यार-दोस्तों से मिलते हैं।
तो हमने एक दोस्त का
दरवाज़ा खटखटाया
द्वार खोला, निकला, मुस्कुराया,
दिमाग़ में होने लगी आहट
कुछ शूं-शूं
कुछ घरघराहट।
यंत्र से आवाज़ आई-
अकेला ही आया है,
अपनी छप्पनछुरी,
गुलबदन को
नहीं लाया है।
प्रकट में बोला-
ओहो!
कमीज़ तो बड़ी फ़ैन्सी है!
और सब ठीक है?
मतलब, भाभीजी कैसी हैं?
हमने कहा-
भा...भी....जी
या छप्पनछुरी गुलबदन?
वो बोला-
होश की दवा करो श्रीमन्‌
क्या अण्ट-शण्ट बकते हो,
भाभीजी के लिए
कैसे-कैसे शब्दों का
प्रयोग करते हो?
हमने सोचा-
कैसा नट रहा है,
अपनी सोची हुई बातों से ही
हट रहा है।
सो फ़ैसला किया-
अब से बस सुन लिया करेंगे,
कोई भी अच्छी या बुरी
प्रतिक्रिया नहीं करेंगे।

लेकिन अनुभव हुए नए-नए
एक आदर्शवादी दोस्त के घर गए।
स्वयं नहीं निकले
वे आईं,
हाथ जोड़कर मुस्कुराईं-
मस्तक में भयंकर पीड़ा थी
अभी-अभी सोए हैं।
यंत्र ने बताया-
बिल्कुल नहीं सोए हैं
न कहीं पीड़ा हो रही है,
कुछ अनन्य मित्रों के साथ
द्यूत-क्रीड़ा हो रही है।
अगले दिन कॉलिज में
बी०ए० फ़ाइनल की क्लास में
एक लड़की बैठी थी
खिड़की के पास में।
लग रहा था
हमारा लैक्चर नहीं सुन रही है
अपने मन में
कुछ और-ही-और
गुन रही है।
तो यंत्र को ऑन कर
हमने जो देखा,
खिंच गई हृदय पर
हर्ष की रेखा।
यंत्र से आवाज़ आई-
सरजी यों तो बहुत अच्छे हैं,
लंबे और होते तो
कितने स्मार्ट होते!
एक सहपाठी
जो कॉपी पर उसका
चित्र बना रहा था,
मन-ही-मन उसके साथ
पिकनिक मना रहा था।
हमने सोचा-
फ़्रायड ने सारी बातें
ठीक ही कही हैं,
कि इंसान की खोपड़ी में
सैक्स के अलावा कुछ नहीं है।
कुछ बातें तो
इतनी घिनौनी हैं,
जिन्हें बतलाने में
भाषाएं बौनी हैं।

एक बार होटल में
बेयरा पांच रुपये बीस पैसे
वापस लाया
पांच का नोट हमने उठाया,
बीस पैसे टिप में डाले
यंत्र से आवाज़ आई-
चले आते हैं
मनहूस, कंजड़ कहीं के साले,
टिप में पूरे आठ आने भी नहीं डाले।
हमने सोचा- ग़नीमत है
कुछ महाविशेषण और नहीं निकाले।

ख़ैर साहब!
इस यंत्र ने बड़े-बड़े गुल खिलाए हैं
कभी ज़हर तो कभी
अमृत के घूंट पिलाए हैं।
- वह जो लिपस्टिक और पाउडर में
पुती हुई लड़की है
हमें मालूम है
उसके घर में कितनी कड़की है!
- और वह जो पनवाड़ी है
यंत्र ने बता दिया
कि हमारे पान में
उसकी बीवी की झूठी सुपारी है।
एक दिन कविसम्मेलन मंच पर भी
अपना यंत्र लाए थे
हमें सब पता था
कौन-कौन कवि
क्या-क्या करके आए थे।

ऊपर से वाह-वाह
दिल में कराह
अगला हूट हो जाए पूरी चाह।
दिमाग़ों में आलोचनाओं का इज़ाफ़ा था,
कुछ के सिरों में सिर्फ
संयोजक का लिफ़ाफ़ा था।

ख़ैर साहब,
इस यंत्र से हर तरह का भ्रम गया
और मेरे काव्य-पाठ के दौरान
कई कवि मित्र
एक साथ सोच रहे थे-
अरे ये तो जम गया!

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

तुम एम.ए. फ़ास्ट डिवीज़न हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिए,
मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

तुम फ़ौजी अफ़सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ,
तुम राबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू साप्रेता हूँ,
तुम एसी घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेता हूँ,
तुम नई मारुति लगती हो, मैं स्कूटर लमरेता हूँ,
इस कदर अगर हम चुप-चुप कर आपस मे प्रेम बढ़ाएँगे,
तो एक रोज़ तेरे डॅडी अमरीश पूरी बन जाएँगे,
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो ज़ैल प्रिए,

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिए,
तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखो की हड़ताल प्रिए,
तुम हीरे जड़ी तश्तारी हो, मैं अल्मुनियम का थाल प्रिए,
तुम चिकन-सूप बीरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिए, :hysterical:
तुम हिरण-चाओकाड़ी भारती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिए,
तुम चंदन-वॅन की लकड़ी हो, मैं हूँ बबूल की छाल प्रिए,
मैं पाके आम सा लटका हूँ, मत मारो मुझे गुलेल प्रिए, :hysterical::hysterical:

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

मैं शनि-देव जैसा कुरूप, तुम कोमल काँचन काया हो,
मैं तन-से मन-से कांशी राम, तुम महा चंचला माया हो,
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ,
तुम राज घाट का शांति मार्च, मैं हिंदू-मुस्लिम दंगा हूँ, :hysterical:
तुम हो पूनम का ताजमहल, मैं काली गुफ़ा जनता की,
तुम हो वरदान विधाता का, मैं ग़लती हूँ भगवांता की,
तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की तेलम-तेल प्रिए, :hysterical:

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए

तुम नई विदेशी मिक्सी हो, मैं पत्थर का सिलबत्ता हूँ,
तुम ए.के.-सैंतालीस जैसी, मैं तो इक देसी काटता हूँ,
तुम चतुर राबड़ी देवी सी, मैं भोला-भला लालू हूँ,
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मैं चिड़ियाघर का भालू हूँ,
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वी.पी.सिन्घ सा ख़ाली हूँ, :hysterical::hysterical:
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं पोलीस्मॅन की गाली हूँ,
कल जेल अगर हो जाए तो दिलवा देना तुम बेल प्रिए,

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितारा होटेल हो,
मैं माहुए का देसी ठर्रा, तुम रेड-लेबल की बोटेल हो, :haha:
तुम चित्रा-हार का मधुर गीत, मैं कृषि-दर्शन की झाड़ी हूँ,
तुम विश्वा-सुंदरी सी कमाल, मैं ठेलिय छाप कबाड़ी हूँ,
तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलिफोन वाला चोँगा,
तुम मछली मानसरोवर की, मैं सागर तट का हूँ घॉंघा,
दुस मंज़िल से गिर जाऊगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिए,

मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,

तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्षा की लाचारी हूँ,
तुम हो ममता-ज़ैललिता सी, मैं क्वारा अटल-बिहारी हूँ,
तुम तेंदुलकर का शतक प्रिए, मैं फॉलो ओं की पारी हूँ,
तुम गेट्ज़, मातिज़, करॉला हो मैं लेयलेंड की लॉरी हूँ, :haha:
मुझको रेफ़री ही रेहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिए,
मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए,
मैं सोच रहा की रहे हैं क़ब्से, श्रोता मुझको झेल प्रिए,
मुश्किल है अपना मेल प्रिए, ये प्यार नहीं है खेल प्रिए.

पुलिस-महिमा



पड़ा - पड़ा क्या कर रहा , रे मूरख नादान

दर्पण रख कर सामने , निज स्वरूप पहचान

निज स्वरूप पह्चान , नुमाइश मेले वाले

झुक - झुक करें सलाम , खोमचे - ठेले वाले

कहँ ‘ काका ' कवि , सब्ज़ी - मेवा और इमरती

चरना चाहे मुफ़्त , पुलिस में हो जा भरती


कोतवाल बन जाये तो , हो जाये कल्यान

मानव की तो क्या चले , डर जाये भगवान

डर जाये भगवान , बनाओ मूँछे ऐसीं

इँठी हुईं , जनरल अयूब रखते हैं जैसीं

कहँ ‘ काका ', जिस समय करोगे धारण वर्दी

ख़ुद आ जाये ऐंठ - अकड़ - सख़्ती - बेदर्दी


शान - मान - व्यक्तित्व का करना चाहो विकास

गाली देने का करो , नित नियमित अभ्यास

नित नियमित अभ्यास , कंठ को कड़क बनाओ

बेगुनाह को चोर , चोर को शाह बताओ

‘ काका ', सीखो रंग - ढंग पीने - खाने के

‘ रिश्वत लेना पाप ' लिखा बाहर थाने के

टेलीफोन

हमारा टेलीफोन है कितना महान
एक नमूना देखिये श्रीमान
हमने लगाया रेलवे inquiry
लग गया कब्रिस्तान

हुआ यूं के हमें कहीं जाना था
सो गाड़ी में आरक्षण करवाना था
सोच के हमने रेलवे का नम्बर लगाया
हमें क्या मालून उधर कब्रिस्तान के बाबु ने उठाया

हमने कहा - एक बर्थ चाहिए, मिल जायेगी?
बैठे ही आपके लिए हैं, हमारी सेवा कब काम आएगी?
हमारा होते बिलकूल न घबराइये
एक क्या दस बर्थ खाली हैं, पूरे खानदान को ले आइये!

भिखारी

जनता क्लास थ्री टायर से
उतर कर हमने
बासी पुडियो का प्यकेट
जैसे ही भिखारी को बढाया
भिखारी हाथ उठा कर बडबडाया
आगे जाओ बाबा
मै फर्स्ट क्लास के यात्रियो का
भिखारी हु |

ये समंदर क्या होवे है ?

एक दिन की बात है
गर्मी थी
बिजली नही थी
मै अपनों गंजी उतार कर
उससेही पंखा कर रह्यो थे
किचन में मेरी घरादी
मछली पका रह्यो थी
की वो बोली
ऐ जी
सुनते हो ?
ये समंदर क्या होवे है ?
तो मै बोल्यों
की ऐ री
समंदर वो होवे है
जहाँ बड़ी बड़ी मछलियाँ
पानी के अन्दर तैरें हैं
फिर भी न दिक्खें हैं
वहीँ किनारे जनानियां
बे-पर्दा घूमें हैं

तो इस पर कढाई में
मछलियों को जरा हिलाकर
वो बोली
ऐ जी
तुम भी तो घर मा
वैसे ही घूम्ये हो
तो क्या समझूं ?
के जैसे घर मर्दों
की होवे है
जनानियों की समंदर होवे है ?

पॉपुलर मेरठी - ४

इस मर्तबा भी आए हैं नम्बर तेरे तो कम
रुसवाइयों का मेरी दफ्तर बनेगा तू
बेटे के सर पे देके चपत बाप ने कहा
फिर फ़ैल हो गया है मिनिस्टर बनेगा तू

किसी जलसे मे इक लीडर ने यह ऐलान फ़रमाया
हमारे मंत्री आने को हैं बेदार हो जाओ
यकायक फ़िल्म का नगमा कहीं से गूँज उठा था
‘वतन की आबरू खतरे मे है होसियार होजा ओ

पुरानी शायरी नये संदर्भ (पैरोडियाँ)

अभी तो मैं जवान हूँ

ज़िन्दगी़ में मिल गया कुरसियों का प्यार है
अब तो पांच साल तक बहार ही बहार है
कब्र में है पांव पर
फिर भी पहलवान हूँ
अभी तो मैं जवान हूँ


मुझसे पहली सी मुहब्बत

सोयी है तक़दीर ही जब पीकर के भांग
मंहगाई की मार से टूट गयी है टांग
तुझे फोन अब नहीं करूंगा
पी सी ओ से हांगकांग
मुझसे पहले सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग


ऐ इश्क मुझे बरबाद न कर

तू पहले ही है पिटा हुआ ऊपर से दिल नाशाद न कर
जो गयी जमानत जाने दे वह जेल के दिन अब याद न कर
तू रात फोन पर डेढ़ बजे विस्की रम की फरियाद न कर
तेरी लुटिया तो डूब चुकी ऐ इश्क मुझे बरबाद न कर


जब लाद चलेगा बंजारा

इक चपरासी को साहब ने कुछ ख़ास तरह से फटकारा
औकात न भूलो तुम अपनी यह कह कर चांटा दे मारा
वह बोला कस्टम वालों की जब रेड पड़ेगी तेरे घर
सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहां
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं

आंसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने कुआ टूटा है पैमाना दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहीं

भारतीय रेल

एक बार हमे करनी पड़ी रेल की यात्रा
देख सवारियों की मात्रा
पसीने लगे छुटने
हम घर की तरफ़ लगे फूटने
इतने में एक कुली आया
ओर हमसे फ़रमाया
साब अन्दर जाना है?
हमने कहा हां भाई जाना है
उसने कहा अन्दर तो पंहुचा दूंगा
पर रुपये पुरे पचास लूँगा
हमने कहा समान नही केवल हम है
तोह उसने कहा क्या आप किसी समान से कम है ?
जैसे तैसे डिब्बे के अन्दर पहुचे
यहाँ का दृश्य तो ओर भी घमासान था
पुरा का पुर डिब्बा अपने आप में एक हिंदुस्तान था
कोई सीट पर बैठा था, कोई खड़ा था
जिसे खड़े होने की भी जगह नह मिली ओह सीट के निचे पड़ा था
इतने में एक बोरा उछालकर आया ओर गंजे के सर से टकराया
गूंजा चिल्लाया यह किसका बोरा है ?
बाजु वाला बोला इसमे तो बारह साल का चोर है
तभी कुछ आवाज़ हुई ओर
इतने मैं एक बोला चली चली
दूसरा बोला या अली …
हमने कहा कहे की अली कहे की बलि
ट्रेन तोह बगल वाली चली ….

शायर

मैं हूँ जिस हाल में ऐ मेरे सनम रहने दे
तेग मत दे मेरे हाथों में कलम रहने दे
मैं तो शायर हूँ मेरा दिल है बहोत ही नाज़ुक
मैं पटाके ही से मर जाऊँगा, बम रहने दे

सागर खैय्यामी

रफ्ता रफ्ता हर पुलिस वाले को शायर कर दिया
महफ़िल-ऐ-शेर-ओ-सुखान में भेज कर सरकार ने
एक कैदी सुबह को फांसी लगा कर मर गया
रात भर गज़ले सुनाई उस को थानेदार ने


एक शाम किसी बज्म में जूते जो खो गए
हम ने कहा बताईये घर कैसे जायेंगे
कहने लगे के शेर सुनाते रहो यूं ही
गिनते नही बनेंगे अभी इतने आएंगे


बोला दूकानदार के क्या चाहिए तुम्हें ?
जो भी कहोगे मेरी दूकान पर वो पाओगे
मैं ने कहा के कुत्ते के खाने का 'cake' है ?
बोला यहीं पे खाओगे यां घर लेके जाओगे ?

पॉपुलर मेरठी - २

अजब नहीं है जो तुक्का भी तीर हो जाए
पते जो दूध तो फिर वोह पनीर हो जाए
मवालियों को न देखा करो हिकारत से
न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए

महबूब

महबूब वादा कर के भी आया ना दोस्तों
क्या क्या किया ना हम ने यहाँ उस के प्यार में
मुर्गे चुरा के लाये थे जो चार
दो आरजू में कट गए, दो इंतज़ार में